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सह॑सा जा॒तान् प्रणु॑दा नः स॒पत्ना॒न् प्रत्यजा॑तान् जातवेदो नुदस्व। अधि॑ नो ब्रूहि सुमन॒स्यमा॑नो व॒यꣳ स्या॑म॒ प्रणु॑दा नः स॒पत्ना॑न् ॥२ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सह॑सा। जा॒तान्। प्र। नु॒द॒। नः॒। स॒पत्ना॒निति॑ स॒ऽपत्ना॑न्। प्रति॑। अजा॑तान्। जा॒त॒वे॒द॒ इति॑ जातऽवेदः। नु॒द॒स्व॒। अधि॑। नः॒। ब्रू॒हि॒। सु॒म॒न॒स्यमा॑न॒ इति॑ सुऽमन॒स्यमा॑नः। व॒यम्। स्या॒म॒। प्र। नु॒द॒। नः॒। स॒पत्ना॒निति॑ स॒ऽपत्ना॑न् ॥२ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:15» मन्त्र:2


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर भी वही पूर्वोक्त विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (जातवेदः) प्रकृष्ट ज्ञान को प्राप्त हुए राजन् ! आप (नः) हमारे (सहसा) बल के सहित (जातान्) प्रसिद्ध हुए (सपत्नान्) शत्रुओं को (प्रणुद) जीतिये और उन (प्रति) (अजातान्) युद्ध में छिपे हुए शत्रुओं के सेवक मित्रभाव से प्रसिद्धों को (नुदस्व) पृथक् कीजिये तथा (सुमनस्यमानः) अच्छे प्रकार विचारते हुए आप (नः) हमारे लिये (अधिब्रूहि) अधिकता से विजय के विधान का उपदेश कीजिये (वयम्) हम लोग आप के सहायक (स्याम) होवें, जिन (नः) हमारे (सपत्नान्) विरोध में प्रवृत्त सम्बन्धियों को आप (प्रणुद) मारें, उन को हम लोग भी मारें ॥२ ॥
भावार्थभाषाः - राजा को चाहिये कि जो राज्य के सेवक शत्रुओं के निवारण करने में यथाशक्ति प्रयत्न न करें उन को अच्छे प्रकार दण्ड देवे और जो अपने सहायक हों, उन का सत्कार करें ॥२ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(सहसा) बलेन सह (जातान्) प्रादुर्भूतान् विरोधिनः (प्र) (नुद) विजयस्व। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः (नः) अस्माकम् (सपत्नान्) सपत्नीव वर्त्तमानान् शत्रून् (प्रति) (अजातान्) युद्धेऽप्रकटान् शत्रुसेविनो मित्रान् (जातवेदः) जातप्रज्ञान (नुदस्व) पृथक् कुरु (अधि) (नः) (ब्रूहि) विजयविधिमुपदिश (सुमनस्यमानः) सुष्ठु विचारयन् (वयम्) (स्याम) भवेम (प्र) (नुद) हिन्धि। अत्रापि पूर्ववद्दीर्घः (नः) अस्माकम् (सपत्नान्) विरोधे वर्त्तमानान् सम्बन्धिनः ॥२ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे जातवेदस्त्वं नः सहसा जातान् सपत्नान् प्रणुद। तान् प्रत्यजातान् नुदस्व। सुमनस्यमानस्त्वं नोऽधि ब्रूहि। वयं तव सहायाः स्याम। यान्नः सपत्नान् त्वं प्रणुद तान् वयमपि प्रणुदेम ॥२ ॥
भावार्थभाषाः - ये राजभृत्याः शत्रुनिवारणे यथाशक्ति न प्रयतन्ते ते सम्यग्दण्ड्याः। ये स्वसहायाः स्युस्तान् राजा सत्कुर्यात् ॥२ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - आपल्या कर्मचाऱ्यांनी शत्रूंच्या निवारणाचा प्रयत्न न केल्यास राजाने त्यांना चांगली शिक्षा करावी व आपल्याला मदत करणाऱ्यांचा सत्कार करावा.